Muchukand

Muchukand  💮🥀🌹🌼🌻💐🌷🌸🌺💮🥀🌹

मुचुकंद।           💮🌹🥀🌺🌸🌷💐🌻🌼💮🌹🥀

 🥀🌹💮🌼🌻💐 मुचुकुंद🥀🌹💮🌼🌻 

                        कौन थे मुचुकुंद ?

मुचुकंद एक महान प्रतापी , शूरवीर , अतिबलशाली राजा हुए थे  , जिनसे देवताओं को भी मदद लेनी पड़ी थी।
         मुचुकंद का जन्म राजा मान्धाता के यहां हुआ था। जो कि इक्ष्वाकु वंश से थे । इस वंश को सूर्यवंश का नाम भी दिया गया है।
         महान राजा हरिश्चन्द्र, राजा दिलीप, राजा रघु व महान प्रतापी भगवान श्री राम भी इसी वंशावली में जन्मे थे व राज किए थे । वह एक महान तपस्वी भी थे अपने तप से काफी बल अर्जित किया था,उसी बल से उन्होंने देवताओं की रक्षा लंबे समय तक की थी ।अपने बाहुबल की परीक्षा को परखने के लिए कुबेर पर आक्रमण किया था । एक बार जब राक्षसों और देवताओं में भीषण युद्ध हुआ और देवता बुरी तरह युद्ध में पराजित हुए, बार-बार आकर्मणों से तंग आकर सभी राजा मुचुकंद के यहां मदद मांगने को पहुंचे । राजा मुचुकंद ने भी उन्हें निराश न करते हुए मदद का आश्वासन दिया और उनकी मदद की । वह राजा मुचुकंद बहुत लंबे समय तक राक्षसों से लड़ते रहे उन्हें पराजित करते रहे , मुचुकंद ने लंबे समय तक देवताओं की रक्षा की , बाद में जब देव सेना को एक तीव्र चोकस और महान बलशाली सेनापति भगवान कार्तिकेय के रूप में मिल गया, जो कि भगवान शिव के पुत्र थे , वह युद्धकौशल में बहुत प्रवीण व सक्षम थे।
         तब देवराज इन्द्र व अन्य देवताओं ने राजा मुचुकंद से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हे राजन हम सभी देवता आपके बहुत-बहुत आभारी हैं ,कि आपने अपने पारिवारिक जीवन को त्याग कर इतने लंबे समय तक हमारी रक्षा की है, है राजन् यह समय इतना लंबा है कि पृथ्वी पर बहुत वर्ष बीत चुके हैं। और पृथ्वी पर अब तक आपके कुल का कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं रहा होगा अर्थात जो आपको पहचानेगा। देवताओं ने अपनी शक्ति से राजा मुचुकंद को कुछ वरदान मांगने को कहा, उन्होंने कहा कि मोक्ष के अतिरिक्त कोई भी वरदान मांग लीजिए , क्योंकि मोक्ष प्रदान करना हमारे सामर्थ्य से परे है।
             मुचुकंद ने कहा है देवराज मैं इतने लंबे समय तक युद्ध करते हुए बहुत बुरी तरह से थक गया हूं , मेरा शरीर चूर-चूर हो गया है, अतः मैं सोना चाहता हूं । भरपूर आराम करना चाहता हूं , कोई भी मेरी निद्रा में  विघ्न ना पहुंचाए।  यदि कोई मेरी नींद में विघ्न पहुंचाए तो उसकोभस्म हो जाना चाहिए । अर्थात उस प्राणी को जल कर राख हो जाना चाहिए।  
            देवराज इंद्र ने कहा! तथास्तु।"ऐसा ही होगा" यदि कोई आपकी निद्रा में विघ्न डालेगा तो वह जल कर राख होगा।
            ऐसा वरदान प्राप्त करके राजा मुचुकंद पृथ्वी की ओर प्रस्थान कर गए। पृथ्वी पर पहुंच कर उन्होंने एक एकांत में पर्वत पर एक गुफा को खोजकर उसका चयन सोने के लिए किया और सदियों उसमें विश्राम किया।
            युगों-युगों के परिवर्तन हो चुके थे , त्रेता युग बीत चुका था और महाभारत काल में जब द्वापर युग चल रहा था , भगवान विष्णु श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर आ चुके थे , और अपनी शक्ति व लीलाओं से दुष्टों का नाश कर रहे थे , यह उसी समय की बात है::--
               जरासंध उस समय मगध राज्य का राजा था , जो कि इस समय बिहार कहलाता है। श्री कृष्ण को वह अपना परम शत्रु मानता था, क्योंकि श्री कृष्ण ने उसके परम मित्र कंस का वध किया था। जरासंध कैसे भी कृष्ण को हराना चाहता था। श्रीकृष्ण और बलराम को हराने के लिए जरासंध ने 17 बार आक्रमण किया। श्री कृष्ण और बलराम हर बार उसकी समस्त सेना को नष्ट कर केवल उसको अपमानित करके जीवित छोड़ देते थे।
               जरासंध बहुत बलशाली व क्रूर शासक था वह दुसरे राजाओं को बंधक बनाकर उन पर अत्याचार करता था, उन्हें पराधीन करके , या यदि पराधीनता स्वीकार न करे तो उसका वध करके स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता था।अंत में भीम ने उसको 13 दिन के मलयुद्ध के बाद मारा था, श्रीकृष्ण भी भीम के साथ वहां उपस्थित थे। 

 

             श्री कृष्ण को हराने के लिए एक बार जरासंध ने कालयवन
को बुलाया । क्योंकि कालयवन शिववरदान के कारण युद्ध में अपराजित और बेजोड़ था। वह निर्दयी व क्रूर भी था ।उसे पता चलता है कि कृष्ण ही एकमात्र योद्धा थे जो उसके युद्ध की चुनौती स्वीकार कर सकते थे और उसे हराने का सामर्थ्य रखते थे। और वह जरासंध का साथ देने को चल दिया।
         श्री हरिवंश पुराण के अनुसार कालयवन का पिता ऋषि शेशिरायण कालयवन महर्षि गार्ग्य का पुत्र व म्लेक्ष्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था। भगवान शंकर से उसे युद्ध में अजय का वरदान भी मिला था।  गर्ग गौत्र में उत्पन्न होने के कारण गार्ग्यत मुनि भी कहा जाता था । वह त्रिगर्त राज्य के राजगुरू थे। जिन्होंने अप्सरा रंभा संग विवाह किया था। इसी विवाह से कालयवन का जन्म हुआ था।  मलेच्छ देश के  सम्राट कालजंग ने कालयवन को शेशिरायण से गोद लेकर दत्तक पुत्र बना लिया और उत्तराधिकारी बना दिया। वह यवन देश का सम्राट बन गया था।
         जरासंध को यह परामर्श राजा शल्य ने दिया था कि श्री कृष्ण को हराने के लिए सम्राट कालयवन को मदद के लिए बुलाया जाए ।
   शल्य पांडवों के मामा थे। नकुल सहदेव के मामा , माद्री के भाई थे।
             मथुरा आक्रमण के समय श्री कृष्ण व कालयवन के बीच भीष्ण युद्ध हुआ शिव वरदान का मान रखते हुए श्रीकृष्ण रणछोड़ दास बन गए। श्री कृष्ण लीला के वश में हो कर कालयवन श्रीकृष्ण का पीछा करने लगा, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हीं गुफाओं का रुख किया
 जहां पर महाराज मुचुकंद, अब ऋषि मुचुकंद योग निद्रा में युगों-युगों से सोए हुए थे। प्रभु श्री कृष्ण उसी गुफा में प्रवेश कर गए और पीछे -पीछे कालयवन। श्री कृष्ण ने अपना पीताम्बर जो कि वह धारण किए हुए थे को उतारा और सोए हुए ऋषि मुचुकंद के उपर डाल दिया। और स्वयं गुफा के कोने में छुप गए। कालयवन उस सोए हुए ऋषि मुचुकंद को श्री कृष्ण समझ बैठा था।कालयवन दौड़ता हुआ थका हुआ गुफा में पीताम्बरी वस्त्रों से ढके ऋषि मुचुकंद पर चिल्लाता है और प्रहार करता है, मुझे दौड़ा कर , थकाकर स्वयं यहां सोया है!
 ऋषि मुचुकंद प्रहार से उठ जाते हैं , जैसे ही उनकी दृष्टि कालयवन पर पड़ती है, कालयवन का शरीर जलने लगता है। इस तरह एक धूर्त शासक का अंत हो जाता है।
       कालयवन के भस्म हो जाने केबाद प्रभु श्री कृष्ण चट्टानों के पीछे से निकलकर ऋषि मुचुकंद के सम्मुख प्रकट हुए और अपने विराट रूप (विष्णु रूप) के दर्शन ऋषि मुचुकंद को कराए । प्रभु दर्शन करके वह ऋषि मुचुकंद धन्य हो गया, और प्रभु के मार्गदर्शन से, आज्ञा लेकर
       मोक्ष प्राप्त करने के लिए, यज्ञ आदि करके मोक्ष प्राप्ति के रास्ते पर चल पड़ा। मुचुकंद ने कहा हे प्रभु तापत्रय से अभिभूत होकर मैं सर्वदा इस संसार चक्र में भ्रमण करता रहा परन्तु मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं की मैंने अपना सर्वस्व समर्पण करके सहायता की अपना परिवार त्याग कर धर्म कर्तव्यों को निभाया। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नहीं हुई। अब मै आपका ही अभिलाषी हूँ, आपको प्राप्त करना चाहता हूं, और मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूं श्री कृष्ण के आदेश से ऋषि मुचुकुन्द ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया।और मोक्ष की तरफ अग्रसर हो गए।मुचुकंद तीर्थ धौलपुर में बताया जाता है। वैसे मुचुकंद गुफाओं के नाम पर बहुत गुफाएं बताई गई हैं, जैसे कि ललित पुर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी मुचुकंद गुफाएं हैं जहां पर बताया जाता है कि ऋषि मुचुकंद ने तपस्या की थी ।
       इस लेख को पढ़कर आपको अच्छा लगे ऐसी आशा करता हूं।
                                             धन्यवाद । 

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